भोपाल। आरजीपीवी के अफसरों द्वारा किए गए नियम विरुद्ध कार्यों व भ्रष्टाचार की परतें नई सरकार की दस्तक के साथ ही खुलना शुरू हो गई हैं। पिछले कई महीनों से रजिस्ट्रार प्रो. एसके जैन के खिलाफ कई मामलों में जांच चल रही है, जो अभी तक नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है। शीघ्र ही इसकी जांच रिपोर्ट के पेश होने की संभावना है। इसके अलावा कई अन्य मामलों में जांचें अटकी हुई हैं। प्रो. जैन के खिलाफ आठ बिंदुओं पर जांच होनी है। पहली जांच में उज्जैन इंजीनियरिंग कॉलेज में प्राचार्य रहते नियम विरुद्ध तरीके से फैकल्टी को पीएचडी इंक्रीमेंट देने का आरोप है। वहीं दूसरी जांच आरजीपीवी में रजिस्ट्रार रहते पिछले वर्षों में की गई विभिन्न लापरवाही से जुड़ी है। इसमें मुख्य रूप से पांच लाख छात्रों को डेढ़ साल तक अंकसूची नहीं मिलने का आरोप है। इसके अलावा 65 हजार छात्रों को समय पर डिग्री नहीं मिलने से हायर एजुकेशन व नौकरी से वंचित होने का आरोप है। शासन ने इन मामलों में आरजीपीवी के ही सचिव डॉ. अरुण नाहर को जांच अधिकारी नियुक्त किया है।
रजिस्ट्रार पर ये लगे हैं आरोप
* सक्षम अधिकारी की अनुमति के बिना स्वयं मुद्रित कर जारी करने की अनुमति एमआईटीएस- ग्वालियर को दी गई।
* आठ माह पूर्व सभी स्वीकृति होने के उपरांत भी प्रिंटिंग आदेश नहीं दिया जिससे विवि के छात्र- छात्राओं को दो वर्ष तक मार्कशीट नहीं मिल सकी।
* कुलपति द्वारा अनुमोदन के बाद भी सिक्यूरिटी सर्विसेस की निविदा निरस्तीकरण का आदेश जारी नहीं किया जिससे वित्तीय हानि हुई।
* वायवा के लिए नियुक्त किए गए एक्सटर्नल व सुपरवाइजर के मानदेय व यात्रा भत्ता की नस्ती पर अवांछनीय टीप लिखी गई।
* पूर्व कुलपति के आदेशों की अवहेलना कर विवि की छवि धूमिल की गई। एक वर्ष में 65 हजार छात्र- छात्राओं की डिग्रियां तैयार की गईं थीं। लेकिन कंटेनर न होने के कारण डिस्पेच नहीं हो सकीं।
* राज्यपाल के प्रमुख सचिव के पत्र के अनुसार रजिस्ट्रार ने उनसे सीधे पत्राचार कर विवि के अधिनियमों का उल्लंघन किया, जिसमें प्रथम दृष्टया दोषी पाया है।
* रजिस्ट्रार द्वारा विवि के शिक्षक एवं अधिकारियों की कैश, आश्रितों की आर्थिक सहायता, कंप्यूटर, स्टेशनरी व दैनिक कार्यों से संबंधित नस्तियों को बाधित करने संबंधी कार्य किए गए।