भोपाल । मैं मन, वचन और कर्म से हिन्दुस्तानी हूं, लेकिन लोग मुझे अज्जू पाकिस्तानी कहकर ताना मारते थे। मैं चुप ही रहता था, क्योंकि ऐसा कोई सरकारी कागज नहीं था, जो मुझे भारतीय साबित कर सके। 27 साल इंतजार के बाद भारतीय नागरिकता का प्रमाण-पत्र पाकर मैं बहुत खुश हूं। अब गर्व से कह सकूंगा कि मैं अज्जू पाकिस्तानी नहीं, अज्जू हिन्दुस्तानी हूं। यह बात शुक्रवार को अजीत कुमार सदाना ने कही। उन्हें एडीएम संतोष कुमार वर्मा ने कलेक्टोरेट में एक कार्यक्रम में भारतीय नागरिकता का प्रमाण-पत्र प्रदान किया। एडीएम ने कुल 42 पाकिस्तानी हिन्दू (सिंधी) नागरिकों को भारतीय नागरिकता प्रदान की। सभी नागरिकों ने राष्ट्रगान गाकर भारत माता के नारे लगाए। आज का दिन होली-दिवाली से कम नहीं: संत हिरदाराम सिंधी समाज के उपाध्यक्ष मोहित शिवानी ने कहा कि 42 लोगों को भारतीय नागरिकता मिल गई है। इनके लिए आज का दिन किसी होली और दीपावली से कम नहीं है। उन्होंने भारतीय नागरिकता पाने के नियम सरल करने पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह का आभार भी व्यक्त किया।
खुद के नाम लूंगा मेडिकल स्टोर का लायसेंस
नेहरू नगर स्थित गोमती कॉलोनी में रहने वाले वीके रेझा ने बताया कि वे 1979 में बलूचिस्तान प्रांत के क्वेटा से उदयपुर में लॉन्ग टर्म वीजा पर रहने आए थे। तब पाकिस्तान में हिन्दुओं को परेशान किया जा रहा था। 1983 में भोपाल आए, तभी ये यहां रह रहा हूं। मेरी पत्नी हिन्दुस्तानी है, लेकिन मैं पाकिस्तानी होने का दु:ख वर्षों से झेल रहा था। नागरिकता प्रमाण-पत्र मिलने के साथ यह परेशानी खत्म हो गई। अब मैं इस प्रमाण-पत्र के आधार पर दूसरे के नाम पर चला रहा मेडिकल स्टोर स्वयं के नाम पर चला सकूंगा। उसका लायसेंस भी अपने ही नाम पर लूंगा।
बीमार थे, इसलिए एडीएम खुद प्रमाणपत्र देने गाड़ी के पास पहुंचे
1997 से पाकिस्तान से लॉन्ग टर्म वीजा पर भोपाल में रह रहे अर्जन दास (85) पैरालिसिस से ग्रसित होने के बाद भी प्रमाण- पत्र लेने पहुंचे। उनके साथ पत्नी माया, बेटे अजीत, कृपाल दास, बेटियां अनीला, गुड्ड्ी को नागरिकता का प्रमाण-पत्र मिला। एडीएम संतोष वर्मा उन्हें प्रमाण-पत्र देने खुद नीचे गाड़ी तक आए। प्रमाण-पत्र पाकर अर्जन दास भावुक हो गए। उन्होंने कहा, 1991 में बेटा अजीत यहा आया था, तब मैं पाकिस्तान के सिंध प्रांत स्थित जेकावाद में चने की फैक्ट्री चलाता था। वहां से कारोबार छोड़कर 1997 में पत्नी, बच्चों के साथ यहां आ गया। तीन बहनें पाकिस्तान में रहती हैं, उनकी बड़ी याद आती है। 2009 में उनसे मिलने गया था। बहनें कहती हैं कि हमें भी ले चलो।