इंदौर। सरकार ने चार स्तरीय वेतनमान के सपने दिखाकर डॉक्टरों को सरकारी खजाने से भुगतान कर दिया। नियमों के रोड़े और कानूनी पेंचदगियां सामने आने के बाद सरकार ने वादाखिलाफी की और डॉक्टरों की जेब से वसूली का फरमान जारी कर दिया। इससे परेशान डॉक्टर हाईकोर्ट में बाजी हार गए। वसूली से बचने के लिए डॉक्टरों ने चंदा कर सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई, जिसके बाद सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने रिकवरी पर स्टे दे दिया। वकील रोहन ओझा ने बताया कि प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय की बेंच में लगा था। चिकित्सकों के समूह के वकील की दलीलों के आधार पर न्यायालय द्वारा शासन को नोटिस जारी किए गए हैं, जिसमें शासन द्वारा की जाने वाली रिकवरी के आदेश को स्टे किया गया है। प्रकरण में स्थानीय वकील रोहिन ओझा, विजय हंसारिया, संजय सरीन, गगनदीप कौर और मेघना ओझा ने पैरवी की। आदेश एवं नोटिस के बाद प्रदेशभर के चिकित्सकों को उम्मीद है कि वर्तमान शासन लंबे समय से जारी इस गतिरोध को दूर करेगा और चिकित्सकों के प्रतिनिधिमंडल से चर्चा कर समस्या का निराकरण करेगा।
ये है मामला- सरकार ने डॉक्टरों को बेहतर तनख्वाह और ओहदा देने के लिए साल 2008 में चार स्तरीय वेतनमान की सौगात दी। इसके तहत 2009 से मोटी रकम का भुगतान किया गया। 2012 में सरकार ने इस काल्पनिक गणना को त्रुटिपूर्ण माना और अब वसूली के लिए नोटिस जारी हो रहे हैं।
2008 में वेतन दिया, 2012 में बंद- सरकार ने काल्पनिक गणना के आधार पर 2008 में चार स्तरीय वेतनमान स्वीकृत किया, 2009 से भुगतान दिया। 2012 में इसे गलत माना और अब 2013 से वसूली की बात कही।